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कविता

बूढ़ी

सुमित पी.वी.


गाँव के उस पुराने किले के पास
जो पुराना मकान है
उसके पास से गुजरते समय मैं
अक्सर माँ का हाथ पकड़ कर
उनके पीछे-पीछे चलता था
उस मकान के अंदर से
बाहर तक जो एक लंबी सिसकी
की आवाज पहुँच जाती थी
उससे मुझे डर लगता था।

किसी ने कहा कि वह आवाज उस मकान में
रहने वाली बूढ़ी औरत की दर्द भरी
सिसकी है
मुझे वह सिसकी, सिसकी तो नहीं लगती थी
बूढ़ी द्वारा अपनी जिंदगी के महीन लम्हों की
किताब के पन्ने पलटने की
आवाज लगती थी!

 


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